हम ने देखी है, उन आँखों की महकती खुशबू
हाथ से छूके इसे रिश्तों का इल्ज़ाम ना दो
सिर्फ एहसास है ये, रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो.…
प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज़ नहीं
एक खामोशी है, सुनती है, कहा करती है
न ये बुझती है, न रुकती है, न ठहरी है कहीं
नूर की बूँद है, सदियों से बहा करती है.…
मुस्कराहट-सी खिली रहती है आँखों में कहीं
और पलकों पे उजाले-से झुके रहते हैं
होठ कुछ कहते नहीं, काँपते होठों पे मगर
कितने खामोश-से अफसाने रुके रहते हैं.…
Gulzar (Khamoshi, 1969)
हाथ से छूके इसे रिश्तों का इल्ज़ाम ना दो
सिर्फ एहसास है ये, रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो.…
प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज़ नहीं
एक खामोशी है, सुनती है, कहा करती है
न ये बुझती है, न रुकती है, न ठहरी है कहीं
नूर की बूँद है, सदियों से बहा करती है.…
मुस्कराहट-सी खिली रहती है आँखों में कहीं
और पलकों पे उजाले-से झुके रहते हैं
होठ कुछ कहते नहीं, काँपते होठों पे मगर
कितने खामोश-से अफसाने रुके रहते हैं.…
Gulzar (Khamoshi, 1969)
"Haath se chhoo ke ise rishton ka ilzaam na do" is perhaps one of the best lines ever written! :)
ReplyDeleteSimply love the simplicity of these lines, despite which the poetry appears rich, deep, and immortal.
Couldn't agree more...
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